हनुमान स्तुति
हनुमान स्तुति
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| हनुमानजी |
दनुजवनकृष्णुं ज्ञानिनामग्रगण्यम |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि "||
अर्थ: - अतुल बल के धाम , सोने के पर्वत के समान कान्तियुक्त शरीरवाले, दैत्यरूपी वन को ध्वंस करें वाले , ज्ञानियों में सबसे आगे , सम्पूर्ण गुणों के निधान , वानरों के स्वामी , श्री रघुनाथ जी के प्रिये भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं ।
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| हनुमानजी |
"मनोजवं मारुततुल्य वेगम् जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं
वातात्मजं वानर युथमुख्यं श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये"||
अर्थ: - वह जो मन की गति से भी तेज है | जो वायु से भी ज्यादा बलशाली है जिन्होंने सभी इन्द्रियों पर पूर्ण विजय प्राप्त की है जो बुद्धि में सबसे आगे है जो वायु के पुत्र है | जो वानरों में प्रमुख है | मैं भगवान श्री राम चन्द्र के उस भक्त ( हनुमान जी ) की शरण में जाता हूं |
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| हनुमानजी |
"मंगल – मूरति मारुत – नंदन ।
सकल – अमंगल – मूल – निकंदन ।।
पवनतनय संतन – हितकारी ।।
हदय बिराजत अवध – बिहारी ।।
मातु – पिता, गुरु, गनपति, सारद ।।
सिवा -समेत संभु, सुक, नारद ।।
चरन बंदि बिनवौं सब काहू ।।
देहु रामपद- नेह – निबाहू ।।
बंदौं राम – लखन – बैदेही ।।
जे तुलसीकेपरम सनेही "।।
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| हनुमानजी |
"निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान "॥
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| हनुमानजी और माता सीता |
"प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान |
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करैं हनुमान" ॥
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| रामजी और हनुमानजी |
"प्रणव पवनकुमार खाल बन पावक ज्ञान घन।
जासु ह्रदय आगर बसु राम सर चाप धर"।।
हनुमान चालीसा के लिए click here
जासु ह्रदय आगर बसु राम सर चाप धर"।।
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जय श्री राम
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