वसंत पंचमी
वसंत पंचमी
वसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार
है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह
पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई
राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण
करती हैं।
प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल
को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब
फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़
रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। भर भर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न
मनाया जाता था जिसमें भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा होती,
यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को
ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों
तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
पर्व का महत्व
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो
क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और
नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से
इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद
भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की
पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना
ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी
का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा
का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक,
गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार,
सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना
से करते हैं।
विद्यार्थी और किसानों के लिए ये बहुत ही महत्व का पर्व
वसंत पंचमी, वसंत
ऋतू के आगमन को दर्शाता है। इसी दिन देवी सरस्वती की पूजा भी की जाती है। यह
त्यौहार भारत में हिन्दूओं द्वारा बहुत ही उत्साह और ख़ुशी से मनाया जाता है।
हिंदी भाषा में बसंत का मतलब होता है बसंत ऋतू और पंचमी का अर्थ होता है पांचवा दिन। आसान शब्दों में अगर हम समझे तो बसंत पंचमी
बसंत ऋतू के पांचवे दिन मनाया जाता है। यह दिन माघ माह का पांचवा दिन होता है। यह
दिन सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
किसानों के खेतों में वसंत ऋतू में आप पीले सरसों के फूल लहराते हुए देख सकते हैं जो इस ऋतू के आगमन को बताते हैं।
बसंत पंचमी, सरस्वती
को समर्पित है जो ज्ञान की देवी हैं। हिंदू पौराणिक
कथाओं के अनुसार सरस्वती देवी निरंतर सभी लोगों को ज्ञान प्रदान करती है। इस दिन
को देवी सरस्वती का जन्म दिन भी माना जाता है।
इस त्यौहार को भारत में सभी स्कूल,
कॉलेज और यूनिवर्सिटी में बहुत ही सुंदर तरीके से पारंपरिक रूप से
मनाया जाता है और सभी छात्र माँ सरस्वती से आशीर्वाद लेते हैं। यह मौसम बहुत ही
सुहाना होता है और खेतों में फसल लहराते हुए बहुत ही सुन्दर दिखते हैं।
हमारे देश में बसंत पंचमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। बसंत
पंचमी
के दिन ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती देवी का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन
देवी सरस्वती की पूजा-
विधिपूर्वक और कामदेव की पूजा की जाती थी
और देवताओं
पर अन्न की बालियाँ चढ़ाई जाती थीं।
बसंत पंचमी पर हमारी फसल गेहु चना¸जौ आदि तैयार हो जाती हैं इसलिए इसकी
बसंत पंचमी पर हमारी फसल गेहु चना¸जौ आदि तैयार हो जाती हैं इसलिए इसकी
खुशी
में हम बसंत पंचमी का त्योहार मनाते हैं। संध्या के समय बसंत का मेला लगता
है
जिसमें लोग परस्पर एक दूसरे से बहुत ही स्नेह के साथ मिलते है और खुशियाँ
मानते
है।
इस पर्व पर विद्यालयों में सरस्वती पूजा होती है और शिक्षक विद्यार्थियों को विद्या
इस पर्व पर विद्यालयों में सरस्वती पूजा होती है और शिक्षक विद्यार्थियों को विद्या





