नमामि नर्मदा
नमामि नर्मदा
नर्मदा, जिसे
रेवा के नाम से भी जाना जाता है, मध्य भारत की एक नदी और
भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवीं सबसे लंबी नदी है। यह गोदावरी
नदी और कृष्णा नदी के बाद भारत के अंदर बहने वाली तीसरी सबसे लंबी नदी है। मध्य प्रदेश राज्य
में इसके विशाल योगदान के कारण इसे "मध्य प्रदेश की जीवन रेखा" भी कहा
जाता है। यह उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक पारंपरिक सीमा की तरह कार्य करती है।
यह अपने उद्गम से पश्चिम की ओर लगभग 1,312 किमी चल कर खंभात की खाड़ी, अरब सागर में जा मिलती है।
नर्मदा, मध्य
भारत के मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में
बहने वाली एक प्रमुख नदी है।
मैकल पर्वत के अमरकण्टक शिखर
से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है। इसकी लम्बाई प्रायः 1312 किलोमीटर
है। यह नदी पश्चिम की तरफ जाकर खम्बात की खाड़ी में गिरती है। जानिए इससे जुड़ी खास
बातें-
नर्मदा जयंती
माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती का पर्व
मनाया जाता है। नर्मदा भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। इसका वर्णन रामायण, महाभारत आदि अनेक
धर्म ग्रंथों में भी मिलता है।
नर्मदा नदी कहां से आई
एक बार भगवान शंकर लोक कल्याण के लिए तपस्या करने मैखल
पर्वत पहुंचे। उनके पसीने की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ। इसी
कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई। जो शांकरी व नर्मदा कहलाई। शिव के आदेशानुसार वह
एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में रव (आवाज) करती हुई प्रवाहित होने
लगी। रव करने के कारण इसका एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ। मैखल पर्वत पर उत्पन्न
होने के कारण वह मैखल-सुता भी कहलाई।
किंवदंती (लोक कथायें)
नर्मदा
नदी को लेकर कई लोक कथायें प्रचलित हैं एक कहानी के अनुसार नर्मदा जिसे रेवा के
नाम से भी जाना जाता है और राजा मैखल की पुत्री है। उन्होंने नर्मदा से शादी के
लिए घोषणा की कि जो राजकुमार गुलबकावली के फूल उनकी बेटी के लिए लाएगा, उसके साथ नर्मदा का विवाह होगा।
सोनभद्र यह फूल ले आए और उनका विवाह तय हो गया। दोनों की शादी में कुछ दिनों का
समय था। नर्मदा सोनभद्र से कभी मिली नहीं थीं। उन्होंने अपनी दासी जुहिला के हाथों
सोनभद्र के लिए एक संदेश भेजा। जुहिला ने नर्मदा से राजकुमारी के वस्त्र और आभूषण
मांगे और उसे पहनकर वह सोनभद्र से मिलने चली गईं। सोनभद्र ने जुहिला को ही राजकुमारी
समझ लिया। जुहिला की नियत भी डगमगा गई और वह सोनभद्र का प्रणय निवेदन ठुकरा नहीं
पाई। काफी समय बीता, जुहिला
नहीं आई, तो
नर्मदा का सब्र का बांध टूट गया। वह खुद सोनभद्र से मिलने चल पड़ीं। वहां जाकर
देखा तो जुहिला और सोनभद्र को एक साथ पाया। इससे नाराज होकर वह उल्टी दिशा में चल
पड़ीं। उसके बाद से नर्मदा बंगाल सागर की बजाय अरब सागर में जाकर मिल गईं।
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| नर्मदा नदी |
एक अन्य
कहानी के अनुसार सोनभद्र नदी को नद (नदी का पुरुष रूप) कहा
जाता है। दोनों के घर पास थे। अमरकंटक की पहाडिय़ों में दोनों का बचपन बीता। दोनों
किशोर हुए तो लगाव और बढ़ा। दोनों ने साथ जीने की कसमें खाई, लेकिन अचानक दोनों के जीवन में
जुहिला आ गई। जुहिला नर्मदा की सखी थी। सोनभद्र जुहिला के प्रेम में पड़ गया।
नर्मदा को यह पता चला तो उन्होंने सोनभद्र को समझाने की कोशिश की, लेकिन सोनभद्र नहीं माना। इससे
नाराज होकर नर्मदा दूसरी दिशा में चल पड़ी और हमेशा कुंवारी रहने की कसम खाई। कहा
जाता है कि इसीलिए सभी प्रमुख नदियां बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं,लेकिन नर्मदा अरब सागर में मिलती है।
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अन्य कथा
चंद्रवंश के राजा हिरण्यतेजा को पितरों को तर्पण करते हुए
यह अहसास हुआ कि उनके पितृ अतृप्त हैं। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की तथा उनसे
वरदान स्वरूप नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करवाया। भगवान शिव ने माघ शुक्ल सप्तमी
पर नर्मदा को लोक कल्याणार्थ पृथ्वी पर जल स्वरूप होकर प्रवाहित रहने का आदेश
दिया। नर्मदा द्वारा वर मांगने पर भगवान शिव ने नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग
सदृश्य पूजने का आशीर्वाद दिया तथा यह वर भी दिया कि तुम्हारे दर्शन से ही मनुष्य
पुण्य को प्राप्त करेगा। इसी दिन को हम नर्मदा जयंती के रूप में मनाते हैं।
अगस्त्य, भृगु, अत्री, भारद्वाज, कौशिक, मार्कण्डेय, शांडिल्य, कपिल आदि ऋषियों ने नर्मदा तट पर तपस्या की है। ओंकारेश्वर
में नर्मदा के तट पर ही आदि शंकराचार्य ने शिक्षा पाई और नर्मदाष्टक की रचना की।
भगवान शंकर ने स्वयं नर्मदा को दक्षिण की गंगा होने का वरदान दिया था।
पुराणों के अनुसार नर्मदा का उद्भव भगवान शंकर से हुआ।
तांडव करते हुए शिव के शरीर से पसीना बह निकला। उससे एक बालिका का जन्म हुआ जो
नर्मदा कहलाई। शिव ने उसे लोककल्याण के लिए बहते रहने को कहा।
कहां से शुरू होता है नर्मदा का सफर
अमरकंटक से प्रकट होकर लगभग 1300 किलोमीटर का सफर तय कर नर्मदा गुजरात के खंभात में अरब
सागर में मिलती है। विध्यांचल पर्वत श्रेणी से प्रकट होकर देश के ह्रदय क्षेत्र
मध्यप्रदेश में यह प्रवाहित होती है। नर्मदा के जल से मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा
लाभान्वित है। यह पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है तथा डेल्टा का निर्माण नहीं करती।
इसकी कई सहायक नदियां भी हैं।
धर्म ग्रंथों में नर्मदा
स्कंद पुराण के अनुसार, नर्मदा प्रलय काल में भी स्थायी रहती है एवं मत्स्य पुराण
के अनुसार नर्मदा के दर्शन मात्र से पवित्रता आती है। इसकी गणना देश की पांच बड़ी
एवं सात पवित्र नदियों में होती है। गंगा, यमुना, सरस्वती एवं नर्मदा को ऋग्वेद, सामवेद, यर्जुवेद एवं
अथर्ववेद के सदृश्य समझा जाता है। महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार इसके दोनों तटों पर
60 लाख, 60 हजार तीर्थ हैं
एवं इसका हर कण भगवान शंकर का रूप है। इसमें स्नान, आचमन करने से पुण्य तो मिलता ही है केवल इसके
दर्शन से भी पुण्य लाभ होता है।
नर्मदा अनादिकाल से ही सच्चिदानंदमयी, आनंदमयी और
कल्यायणमयी नदी रही है। हमारे कई प्राचीन ग्रंथों में नर्मदा के महत्व का वर्णन
मिलता है। नर्मदा शब्द ही मंत्र है। नर्मदा कलियुग में अमृत धारा है। नर्मदा के
किनारे तपस्वियों की साधना स्थली भी हैं और इसी कारण इसे तपोमयी भी कहा गया है।
विष्णु पुराण में वर्णन आता है कि नाग राजाओं ने मिलकर
नर्मदा को वरदान दिया है कि जो व्यक्ति तेरे जल का स्मरण करेगा उसे कभी सर्प विष
नहीं व्यापेगा।
नर्मदा के सभी स्थलों को श्राद्ध के लिए उपयुक्त बतलाया गया
है। वायुपुराण में उसे पितरों की पुत्री बताया गया है और इसके तट पर किए गए
श्राद्ध का फल अक्षय बताया गया है। नर्मदा पत्थर को भी देवत्व प्रदान करती है और
पत्थर के भीतर आत्मा प्रतिष्ठित करती है।
नर्मदा परिक्रमा
यह विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा
की जाती है क्योंकि इसके हर घाट पर पवित्रता का वास है तथा इसके घाटों पर महर्षि
मार्कण्डेय, अगस्त्य, महर्षि कपिल एवं
कई ऋषि-मुनियों ने तपस्या की है। शंकराचार्यों ने भी इसकी महिमा का गुणगान किया
है। मान्यता के अनुसार इसके घाट पर ही आदि गुरु शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को
शास्त्रार्थ में पराजित किया था।
हमारे पुराणों में वर्णन है कि संसार में नर्मदा ही एकमात्र
नदी है जिसकी परिक्रमा सिद्ध, नाग,
यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मावन आदि करते
हैं। माघ शुक्ल सप्तमी पर अमरकंटक से लेकर खंभात की खाड़ी तक नर्मदा के किनारे पड़ने
वाले ग्रामों और नगरों में उत्सव रहता है क्योंकि इस दिन नर्मदा जयंती मनाई जाती
है।
माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती के
रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। नर्मदा जीवनदायिनी मां है। यह पूरी दुनिया की अकेली
रहस्यमयी नदी है। चारों वेद इसकी महिमा का गान करते हैं। कहते हैं कि कृपा सागर
भगवान शंकर द्वारा अमरकंटक के पर्वत पर 12 वर्ष की कन्या के रूप में नर्मदा को उत्पन्न किया गया।
नर्मदा ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया था कि 'प्रलय में भी उसका नाश न हो। उसका हर पाषाण
शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो।'
ज्योतिर्लिंग
12 ज्योर्तिर्लिंगों
में से एक ओंकारेश्वर इसके तट पर ही स्थित है। इसके अलावा भृगुक्षेत्र, शंखोद्वार, धूतताप, कोटीश्वर, ब्रह्मतीर्थ, भास्करतीर्थ, गौतमेश्वर। चंद्र
द्वारा तपस्या करने के कारण सोमेश्वर तीर्थ आदि 55 तीर्थ भी नर्मदा के विभिन्न घाटों पर स्थित
हैं। वर्तमान समय में तो कई तीर्थ गुप्त रूप में स्थित हैं।
नर्मदा के किराने बसे प्रमुख शहर और दर्शनीय स्थल
नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक है जो एक बहुत ही रमणीय स्थल है इसके अलवा भेड़ाघाट जबलपुर
होशंगाबाद महेश्वर बड़वानी झाबुआ ओंकारेश्वर बड़ोदारा राजपीपला धर्मपुरी भरूच आदि
प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
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| Statue of unity |
स्टैच्यू
ऑफ यूनिटी भारत के प्रथम उप प्रधानमन्त्री तथा प्रथम गृहमन्त्री वल्लभभाई पटेल को समर्पित एक स्मारक है,
जो भारतीय राज्य गुजरात में स्थित है।गुजरात के
तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2013 को सरदार पटेल के जन्मदिवस के
मौके पर इस विशालकाय मूर्ति के निर्माण का शिलान्यास किया था। यह स्मारक सरदार सरोवर बांध से 3.2 किमी की दूरी पर साधू बेट नामक
स्थान पर है जो कि नर्मदा नदी पर एक टापू है। यह स्थान भारतीय राज्य गुजरात के भरुच के निकट नर्मदा जिले में स्थित है। यह
स्थान भी पर्यटन के लिए महत्तवपूर्ण है।
यह विश्व
की सबसे ऊँची मूर्ति है, जिसकी
लम्बाई 182 मीटर (597 फीट) है। जिसकी आधार के साथ कुल ऊंचाई 208 मीटर (682 फीट) हैं।





