महाशिवरात्रि Mahashivratri
महाशिवरात्रि
![]() |
महाशिवरात्रि (बोलचाल में शिवरात्रि) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग ( जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। अधिक तर लोग यह मान्यता रखते है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवि पार्वति के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
महाशिवरात्रि हिंदुओं का एक धार्मिक
त्योहार है, जिसे हिंदू धर्म के प्रमुख
देवता महादेव अर्थात शिव जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि
का पर्व फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन शिवभक्त
एवं शिव में श्रद्धा रखने वाले लोग व्रत-उपवास रखते हैं और विशेष रूप से भगवान शिव
की आराधना करते हैं।
वैसे तो प्रत्येक माह में एक शिवरात्रि होती है, परंतु फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को
आने वाली इस शिवरात्रि का अत्यंत महत्व है, इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है। वास्तव में महाशिवरात्रि भगवान भोलेनाथ की आराधना का ही पर्व है, जब धर्मप्रेमी लोग महादेव का विधि-विधान के साथ पूजन अर्चन करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन शिव मंदिरों में बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो शिव के दर्शन-पूजन कर खुद को सौभाग्यशाली मानती है।महाशिवरात्रि के दिन शिव जी का विभिन्न पवित्र वस्तुओं से पूजन एवं अभिषेक किया जाता है और बिल्वपत्र, धतूरा, अबीर, गुलाल, बेर, उम्बी आदि अर्पित किया जाता है। भगवान शिव को भांग बेहद प्रिय है अत: कई लोग उन्हें भांग भी चढ़ाते हैं। दिनभर उपवास रखकर पूजन करने के बाद शाम के समय फलाहार किया जाता है।
आने वाली इस शिवरात्रि का अत्यंत महत्व है, इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है। वास्तव में महाशिवरात्रि भगवान भोलेनाथ की आराधना का ही पर्व है, जब धर्मप्रेमी लोग महादेव का विधि-विधान के साथ पूजन अर्चन करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन शिव मंदिरों में बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो शिव के दर्शन-पूजन कर खुद को सौभाग्यशाली मानती है।महाशिवरात्रि के दिन शिव जी का विभिन्न पवित्र वस्तुओं से पूजन एवं अभिषेक किया जाता है और बिल्वपत्र, धतूरा, अबीर, गुलाल, बेर, उम्बी आदि अर्पित किया जाता है। भगवान शिव को भांग बेहद प्रिय है अत: कई लोग उन्हें भांग भी चढ़ाते हैं। दिनभर उपवास रखकर पूजन करने के बाद शाम के समय फलाहार किया जाता है।
कैसे करें महाशिवरात्रि में पूजा
हम आपको बताते हैं कि इस दिन शिव की पूजा किस तरह से की जाती है. सबसे पहले मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ायें. हां एक उपाय और बताता हूं, अगर घर के आस-पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर भी उसे पूजा जा सकता है।
माना जाता है कि इस दिन शिवपुराण का
पाठ सुनना चाहिए। रात्रि को जागरण कर
शिवपुराण का पाठ सुनना हरेक व्रती का धर्म माना गया है। इसके बाद अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का
हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।
माना जाता है कि यह दिन भगवान शंकर का
सबसे पवित्र दिन है. यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत है। इस व्रत को करने
से सब पापों का नाश हो जाता है। हिंसक
प्रवृत्ति बदल जाती है. निरीह जीवों के प्रति आपके मन में दया भाव उपजता है.
महाशिवरात्रि को दिन-रात पूजा का विधान है चार पहर दिन में शिवालयों में जाकर
शिवलिंग पर जलाभिषेक कर बेलपत्र चढ़ाने से शिव की अनंत कृपा प्राप्त होती है. साथ
ही चार पहर रात्रि में वेदमंत्र संहिता, रुद्राष्टा ध्यायी पाठ ब्राह्मणों के मुख से सुनना चाहिए।
सूर्योदय से पहले ही उत्तर-पूर्व में
पूजन-आरती की तैयारी कर लेनी चाहिए. सूर्योदय के समय पुष्पांजलि और स्तुति कीर्तन
के साथ महाशिव रात्रि का पूजन संपन्न होता है, उसके बाद दिन में ब्रह्मभोज भंडारा के द्वारा प्रसाद वितरण कर व्रत
संपन्न होता है।
शास्त्रों के अनुसार, शिव को महादेव इसलिए कहा गया है कि वे देवता,
दैत्य, मनुष्य, नाग, किन्नर, गंधर्व
पशु-पक्षी व समस्त वनस्पति जगत के भी स्वामी हैं। शिव का एक अर्थ कल्याणकारी भी है. शिव की अराधना
से संपूर्ण सृष्टि में अनुशासन, समन्वय और प्रेम भक्ति का
संचार होने लगता है। इसीलिए, स्तुति गान कहता है- मैं आपकी अनंत शक्ति को भला क्या समझ सकता हूं.
अतः हे शिव, आप जिस रूप में भी हों उसी रूप को मेरा आपको
प्रणाम।
शिव और शक्ति का सम्मिलित स्वरूप
हमारी संस्कृति के विभिन्न आयामों का प्रदर्शक है. हमारे अधिकांश पर्व शिव-पार्वती
को समर्पित हैं. शिव औघड़दानी हैं और दूसरों पर सहज कृपा करना उनका सहज स्वभाव है.
'शिव' शब्द
का अर्थ है ‘कल्याण करने वाला’. शिव
ही शंकर हैं. शिव के 'शं' का
अर्थ है कल्याण और 'कर' का अर्थ
है करने वाला. शिव, अद्वैत, कल्याण-
ये सारे शब्द एक ही अर्थ के बोधक हैं. शिव ही ब्रह्मा हैं, ब्रह्मा ही शिव हैं. ब्रह्मा जगत के जन्मादि के कारण हैं.
गरुड़, स्कंद, अग्नि, शिव
तथा पद्म पुराणों में महाशिवरात्रि का वर्णन मिलता है. यद्यपि सर्वत्र एक ही
प्रकार की कथा नहीं है, परंतु सभी कथाओं की रूपरेखा लगभग
एक समान है.
यहा पढ़े हनुमान चालीसा
महाशिवरात्री की कथा (शिकारी कथा)
एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ
तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर
में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के
व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को
पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न
चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन
शिवरात्रि थी।'
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता
रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने
उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर
बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास
से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने
लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका
पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं,
वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी
का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक
गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर
चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या
करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही
तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।
शिकारी हंसा और बोला, सामने
आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो
बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में
मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही
है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं
थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
Also Read Metallurgy
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने
उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई
तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह
अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व
आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो
मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक
क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान
दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे
समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का
घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग
ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर
गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी।
अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही
मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।'
उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र
चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया
था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक
हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की
ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष
उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं
सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की
झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से
हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को
देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की।
तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।









No comments: